आये दिन जब शिक्षकों और विद्यार्थियों की झड़प के बारे में सुनती हूँ
तो उक्त घटना और बेतरह याद आती है।
आध्यात्मिक गुरुओं / शिक्षकों द्वारा चेले ,
विद्यार्थियों के शोषण की ख़बरों के बीच क्या आज भी हम भी हम गुरु पर इतना भरोसा कर सकते हैं !! ना ही आजकल विद्यार्थियों में इतनी सहिष्णुता बची है।
कौन दोषी है ?
कौन पाक साफ़ ??
आध्यात्मिक गुरुओं / शिक्षकों द्वारा चेले ,
विद्यार्थियों के शोषण की ख़बरों के बीच क्या आज भी हम भी हम गुरु पर इतना भरोसा कर सकते हैं !! ना ही आजकल विद्यार्थियों में इतनी सहिष्णुता बची है।
कौन दोषी है ?
कौन पाक साफ़ ??
इस समय में पहचान मुश्किल होती जाती है क्योंकि षड्यंत्रकारी दोनों ही ओर है !
और शायद इसलिए ही आम जन के बीच यह यकीन भी उठता जाता है कि
और शायद इसलिए ही आम जन के बीच यह यकीन भी उठता जाता है कि
कई बार
सहायता , स्नेह , प्रेम यूँ ही / यूँ भी होता है
निःस्वार्थ !!
अरुण अरोरा जी ठीक ही कहते है
वो जमाने हवा हुए जब सरस्वती और लक्ष्मी दोनों नदी के दो किनारे होते थे ...
अब शिक्षा एक बड़ा व्यवसाय है ..
आज अध्यापक दिन के दस बीस से तीस हजार कमाते है ( वो भी उन्हे कम लगते है )
लक्ष्मी सरस्वती से मिलकर अकूत दौलत का साम्राज्य खडा करती है ...
बस ज़रा सा जुगाड़ और राजनीतीज्ञ का वरद- हस्त चाहिए ....
फ्रेंचाइजी बेची जाती है सरस्वती के मंदिरों की ....
मायने बदल गए है...
ढंग बदल गए तो गुरु के रहन सहन आचार वयवहार भी बदलेगे ही .....
बधाई हो गुरुदेवो .....
अब आओ भी
"घंटे" के गुरुदेव हो गए हो जो
जितना पैसा उतने घंटे .....
शिक्षक हो न ??